हिंदू धर्म में भगवान शिव के उपासना के लिए बहुत सारे स्तोत्र और मंत्र पढ़ने और सुनने को मिलता है। इस सभी में से एक बहुत शक्तिशाली स्तोत्र है, नमामिशमिशान रुद्राष्टकम् इसे शिव रुद्राष्टकम् के नाम से जाना जाता है। इस रुद्राष्टकम् स्तोत्र में भगवान शिव जी के स्वरूप, गुण, शक्ति, और उनके करुणा का वर्णन किया गया है।
शिव रुद्राष्टकम की ऐसा माना जाता है कि जब रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए उनकी स्तुति की तब उसने यह अष्टकम गाया था। यह स्तोत्र भगवान शिव के निर्गुण एवं सगुण दोनों स्वरूपों को प्रकट करता है और उन्हें सर्वोच्च शक्ति के रूप में स्थापित करता है।
Namami Shamishan Nirvan Roopam Lyrics
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं
विभुं व्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम्।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं
चिदाकाशमाकाशवासं भजेऽहम्॥
अर्थ:
मैं ईश्वरों के ईश्वर, शिवजी को प्रणाम करता हूँ, जो मोक्षस्वरूप हैं। वे सर्वव्यापक, ब्रह्मस्वरूप और वेदों के मूल तत्व हैं। वे निर्गुण, निर्विकल्प और इच्छा रहित हैं। वे आकाश की तरह चेतनस्वरूप हैं और आकाश में ही स्थित हैं।
निराकारमोङ्कारमूलं तुरीयं
गिराज्ञानगोतीतमीशं गिरीशम्।
करालं महाकालकालं कृपालं
गुणागारसंसारपारं नतोऽहम्॥
अर्थ:
मैं उन शिवजी को नमन करता हूँ जो निराकार हैं, ओंकार के मूल हैं और तुरीय अवस्था में स्थित हैं। वे ज्ञान और अज्ञान से परे हैं, पर्वतराज (हिमालय) के स्वामी हैं। वे महाकाल से भी श्रेष्ठ हैं, अत्यंत कृपालु हैं, गुणों के भंडार हैं और संसार-सागर से पार कराने वाले हैं।
तुषाराद्रिसंकाशगौरं गभीरं
मनोभूतकोटिप्रभाश्री शरीरम्।
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगङ्गा
लसद्भालबालेन्दु कण्ठे भुजङ्गा॥
अर्थ:
जो हिमालय के समान गौरवर्ण के और गहरे स्वरूप वाले हैं, जिनका शरीर करोड़ों कामदेवों की आभा से भी अधिक दिव्य है। जिनके मस्तक पर लहराती हुई गंगा शोभायमान है, जिनके ललाट पर चंद्रमा सुशोभित है और जिनके गले में सर्प लिपटा हुआ है।
चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं
प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्।
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं
प्रियं शङ्करं सर्वनाथं भजामि॥
अर्थ:
मैं उन शिवजी का भजन करता हूँ जिनके कानों में कुंडल झूल रहे हैं, जिनकी भौहें और नेत्र विशाल हैं, जिनका मुखमंडल प्रसन्न है, जो नीलकंठ और दयालु हैं। वे मृगचर्म और मुंडमाला धारण करने वाले हैं तथा सभी के स्वामी हैं।
प्रचण्डं प्रकृष्टं प्रगल्भं परेशं
अखण्डं अजं भानुकोटिप्रकाशं।
त्र्यःशूलनिर्मूलनं शूलपाणिं
भजेऽहं भवानीपतिं भावगम्यम्॥
अर्थ:
मैं उन भगवान शिव की स्तुति करता हूँ जो अत्यंत शक्तिशाली, महान, निर्भीक और परमेश्वर हैं। वे अविनाशी, अजन्मे और करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाशमान हैं। वे अपने त्रिशूल से सभी दुखों और बंधनों का नाश करने वाले हैं, तथा वे माता भवानी के प्रिय पति हैं।
कलातीतकल्याण कल्पान्तकारी
सदा सज्जनानन्ददाता पुरारी।
चिदानन्दसंदोह मोहापहारी
प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥
अर्थ:
हे शिव! आप समस्त कलाओं से परे, कल्याणस्वरूप और संहारकर्ता हैं। आप हमेशा सज्जनों को आनंद देते हैं और दुष्टों का नाश करने वाले हैं। आप ज्ञान और आनंद के स्रोत हैं, तथा मोह को दूर करने वाले हैं। हे प्रभु! हे कामदेव के नाश करने वाले! मुझ पर कृपा करें।
न यावद् उमानाथपादारविन्दं
भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।
न तावत्सुखं शान्ति सन्तापनाशं
प्रसीद प्रभो सर्वभूताधिवासं॥
अर्थ:
जब तक मनुष्य माता पार्वती के स्वामी भगवान शिव के चरणों का भजन नहीं करते, तब तक उन्हें इस लोक या परलोक में सुख, शांति और संतापों से मुक्ति नहीं मिलती। हे प्रभु! आप समस्त जीवों में निवास करने वाले हैं, कृपा करें।
न जानामि योगं जपं नैव पूजां
नतोऽहं सदा सर्वदा शम्भुतुभ्यम्।
जराजन्मदुःखौघ तातप्यमानं
प्रभो पाहि आपन्नमामीश शंभो॥
अर्थ:
हे शिवजी! मैं न तो योग जानता हूँ, न ही जप और न ही पूजा करने की विधि। मैं तो बस सदा-सर्वदा आपको नमन करता हूँ। जन्म, बुढ़ापा और दुखों से व्यथित मैं आपकी शरण में हूँ। हे प्रभु! मेरी रक्षा करें।
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निष्कर्ष
“नमामीशमीशान” स्तोत्र भगवान शिव की महिमा का गुणगान करता है। यह स्तोत्र हमें बताता है कि शिवजी का ध्यान और उनकी स्तुति करने से समस्त दुखों का नाश होता है तथा परम शांति की प्राप्ति होती है। भक्तों को चाहिए कि वे अपने जीवन में भगवान शिव का स्मरण करते रहें और उनकी कृपा प्राप्त करें।