Shiv Tandav Stotra: भगवान शिव की महिमा का शक्तिशाली स्तोत्र है, इस स्तोत्र की रचन रावण द्वारा किया गया था। जो सृष्टि, संहार और पुनर्सृजन का प्रतीक माना गया है। इस स्त्रोत के श्लोक में भगवान शिव जी के अलग भाग भंगिमाओं उनके अलंकणो, दिव्य सौंदर्य और महाशक्ति का वर्णन किया गया है। शिव की जटाओं से बहती पवित्र गंगा, उनके गले में लिपटे सर्प, ललाट पर प्रज्ज्वलित अग्नि और भस्म से विभूषित उनका स्वरूप भक्तों को आध्यात्मिक ऊर्जा प्रदान करता है।
इस स्तोत्र के रोजाना पाठ करने मात्र से व्यक्ति के मन में अध्यात्म का भाव जागृत होता है, और साकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है उसके जीवन में सुख समृद्धि आती है।
आइए शिव स्त्रोत हिंदी में पढ़ें…
शिव तांडव स्तोत्र || Shiv Tandav Stotra
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं
चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥
अर्थ: भगवान शिव अपनी घनी जटाओं में प्रवाहित होने वाली पवित्र गंगाजल की धारा से सुसज्जित हैं। उनके गले में विशाल नागों की माला लटक रही है। उनके डमरू की डम-डम ध्वनि से आकाश गूंज उठा है। वे प्रचंड तांडव कर रहे हैं। ऐसे शिव हमें कल्याण प्रदान करें।
जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी
विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥
अर्थ: शिव की जटाओं में बहने वाली गंगा की लहरें चंचलता से हिल रही हैं। उनके ललाट पर अग्नि प्रज्ज्वलित हो रही है और उनके सिर पर किशोर चंद्र सुशोभित है। मैं ऐसे शिव में प्रतिक्षण रमण करता हूँ।
धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर
स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि
क्वचिद्दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥
अर्थ: भगवान शिव, जो पर्वतराज हिमालय की पुत्री (पार्वती) के प्रियतम हैं, जिनके मन में सदैव आनंद व्याप्त रहता है, वे कृपा से अपने भक्तों की सभी विपत्तियों को हर लेते हैं। ऐसे दिगंबर शिव में मेरा मन सदा आनंदित हो।
जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा
कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।
मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे
मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥
अर्थ: शिव की जटाओं में स्थित नाग के फणों पर चमकने वाले मणियों की आभा चारों दिशाओं को कदंब पुष्पों के समान रक्तवर्ण बना रही है। वे मतवाले गजराज की चमकती त्वचा को वस्त्र की तरह धारण करते हैं। ऐसे भूतनाथ में मेरा मन आनंदित हो।
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर
प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।
भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक
श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥
अर्थ: इंद्रादि देवताओं के द्वारा किए गए पुष्पों की वर्षा से जिनके चरण रज से आच्छादित हो जाते हैं, जो नागों की माला से सुशोभित हैं, और जिनके मस्तक पर चंद्र सुशोभित है, वे शिव हमें दिव्य ऐश्वर्य प्रदान करें।
ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा
निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं
महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥
अर्थ: शिव के ललाट की अग्नि की ज्वाला से कामदेव भस्म हो गया, देवगण उनके चरणों में नतमस्तक रहते हैं, और उनके मस्तक पर चंद्रमा शोभायमान है। ऐसे महाकाल भगवान शिव हमारी रक्षा करें।
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल
द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।
धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक
प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥
अर्थ: जिनका भाल प्रचंड अग्नि से प्रज्वलित है, जिनकी ज्वाला से कामदेव भस्म हो गया, और जो माता पार्वती के स्तनों पर चित्रकारी करने वाले महान शिल्पी हैं, ऐसे त्रिलोचन शिव में मेरी नित्य भक्ति बनी रहे।
नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्
कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः
कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥
अर्थ: शिव नवीन मेघों के समान गहन रूप वाले हैं, उनके कंठ में नीलिमा व्याप्त है, वे गंगा को धारण करने वाले और चंद्रमा को मस्तक पर धारण करने वाले हैं। ऐसे जगत का भार वहन करने वाले शिव हमें समृद्धि प्रदान करें।
प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा
वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥
अर्थ: शिव, जो खिलते हुए नीलकमल के समान कांतिमान हैं, जो कामदेव का, त्रिपुर का, संसार का, यज्ञ का, गजासुर का, और अंधकासुर का संहार करने वाले हैं, मैं उन शिव की वंदना करता हूँ।
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस
द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल
ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥
अर्थ: शिव के फुफकारते हुए नाग के फणों से अग्नि प्रज्वलित हो रही है, उनके तांडव नृत्य से डमरू और मृदंगों की ध्वनि गूंज रही है। ऐसे प्रचंड तांडव करने वाले शिव जयशाली हों।
इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥
अर्थ: जो भी इस उत्तम स्तोत्र का नित्य पाठ करेगा, वह पवित्र हो जाएगा और भगवान शिव की भक्ति प्राप्त करेगा। शिव का चिंतन सभी बंधनों से मुक्त करने वाला है।
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निष्कर्ष
शिव तांडव स्तोत्र भगवान शिव की महिमा का अद्भुत और शक्तिशाली स्तोत्र है, जिसे रावण ने रचा था। यह स्तोत्र भगवान शिव के तांडव नृत्य का वर्णन करता है, जो सृष्टि, संहार और पुनर्सृजन का प्रतीक माना जाता है।
इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भक्त के मन में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है, नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं और जीवन में सुख-समृद्धि आती है। भगवान शिव के अलौकिक सौंदर्य, उनकी महाशक्ति, कृपा और भयहरण स्वरूप का इसमें गहन वर्णन मिलता है, जिससे भक्तों के हृदय में श्रद्धा और भक्ति का संचार होता है।