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Nirvana Shatkam: जानिए निर्वाण षट्कम् पढ़ने के अदभुत फायदे।

शिव निर्वाणषट्कम् : (Nirvana Shatkam) यह स्त्रोत के द्वारा आत्म को शुद्ध किया तह है, और अपने जीवन के अनंतता को समझा जा सकता है। इस Nirvana Shatkam (निर्वाणषट्कम्) का रचना आदि शंकराचार्य द्वारा किया गया था, जो वेदांत के सिद्धांत को समझने में मदद करता है। आइए शिव निर्वाणषट्कम् पढ़ते है।

निर्वाणषट्कम् : Nirvana Shatkam


॥ निर्वाणषट्कम् ॥

मनोबुद्ध्यहङ्कारचित्तानि नाहं
न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे ।
न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥1॥

न च प्राणसंज्ञो न वै पञ्चवायु:
र्न वा सप्तधातुर्न वा पञ्चकोशाः ।
न वाक्पाणिपादं न चोपस्थपायु:
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥2॥

न मे द्वेषरागौ न मे लोभमोहौ
मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः ।
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥3॥

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं
न मन्त्रो न तीर्थं न वेदा न यज्ञाः ।
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥4॥

न मृत्युर्न शङ्का न मे जातिभेदः
पिता नैव मे नैव माता न जन्म ।
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥5॥

अहं निर्विकल्पो निराकाररूपो
विभुत्वाञ्च सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् ।
न चासङ्गतं नैव मुक्तिर्न मेयः
चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ॥6॥

इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं निर्वाणषट्कं संपूर्णम् ॥

                                                                                                                              -आदि शंकराचार्य

 

निर्वाणषट्कम् हिंदी में || Nirvana Shatkam In Hindi


1।
मनो, बुद्धि, अहंकार, चित्त मैं नहीं हूँ,
न ही श्रवण (कान), जिह्वा (जीभ), न ही घ्राण (नाक), नेत्र (आंखें) हूँ।
न ही आकाश, न ही भूमि, न ही अग्नि, न ही वायु,
मैं तो चिदानंदरूप शिव हूँ, शिव हूँ।

2।
न ही प्राण कहलाने योग्य हूँ, न ही पाँच वायु,
न ही सप्तधातु, न ही पंचकोश।
न ही वाणी, न ही हाथ, न ही पैर, न ही गुप्तेंद्रिय, न ही गुदा,
मैं तो चिदानंदरूप शिव हूँ, शिव हूँ।

3।
मुझे न द्वेष है, न राग, न लोभ, न मोह,
न ही मद है, न ही मात्सर्य (ईर्ष्या)।
न ही धर्म, न अर्थ, न काम, न मोक्ष,
मैं तो चिदानंदरूप शिव हूँ, शिव हूँ।

4।
न ही पुण्य हूँ, न ही पाप, न ही सुख, न ही दुःख,
न ही मंत्र, न तीर्थ, न वेद, न यज्ञ हूँ।
न ही भोजन हूँ, न ही भोज्य, न ही भोक्ता,
मैं तो चिदानंदरूप शिव हूँ, शिव हूँ।

5।
न ही मृत्यु का भय है, न ही किसी प्रकार का संशय,
न ही मेरी कोई जाति भेद है।
न ही पिता हूँ, न ही माता, न ही जन्म है मेरा,
न ही बंधु, न मित्र, न गुरु, न शिष्य,
मैं तो चिदानंदरूप शिव हूँ, शिव हूँ।

6।
मैं निर्विकल्प हूँ, निराकार हूँ,
मैं सर्वत्र व्याप्त हूँ, सभी इंद्रियों में स्थित हूँ।
न ही मैं बंधनयुक्त हूँ, न ही मुक्त, न ही ज्ञान का विषय,
मैं तो चिदानंदरूप शिव हूँ, शिव हूँ।

इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं निर्वाणषट्कं संपूर्णम्।

यहां 👉 भूतनाथ अष्टकम पढ़ें।

निर्वाण षट्कम् का लाभ

निर्माणषट्कम् का जो भी भक्त नियमित पाठ करता है, उसे मानसिक शांति और स्थिरता आती है। इसके श्लोक एक एक श्लोक अहंकार से मुक्ति दिलाती है, और आत्मा को शुद्ध करता हैं। और इसके Nirvana Shatkam के अंतिम श्लोक में यह भी बताया गया है, की आत्मा किसी के बंधन में नहीं है, नहीं उसे मुक्ति की आवश्यकता है, वह सदैव मुक्त है। इसी लिए कहा गया है। कभी अपने आप में अहंकार को न आने दे ।

  • निर्वाण षट्कम् का नियमित पाठ मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है।
  • इसके प्रत्येक श्लोक अहंकार से मुक्ति दिलाने में सहायक होते हैं।
  • यह आत्मा को शुद्ध करता है और आत्मज्ञान की ओर अग्रसर करता है।
  • अंतिम श्लोक में बताया गया है कि आत्मा न किसी बंधन में है और न ही उसे मुक्ति की आवश्यकता है।
  • आत्मा सदैव मुक्त और शाश्वत है।
  • अहंकार को त्यागना ही वास्तविक आत्मज्ञान की प्राप्ति है।

निष्कर्ष:

“निर्वाण षट्कम्” केवल एक स्तोत्र नहीं, बल्कि आत्मा की स्वतंत्रता और अनंतता का बोध कराता है। यदि हम इसके भाव को आत्मसात कर लें, तो जीवन में किसी भी प्रकार का भय या बंधन नहीं रहेगा।

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