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Surya Chalisa | सूर्य चालीसा | जय सविता जय जयति दिवाकर!। सहस्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर।

सूर्य चालीसा पढ़ने के लाभ

सूर्य देव को नवग्रहों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है, क्योंकि वे जीवन के स्रोत, ऊर्जा, प्रकाश, और सफलता के प्रतीक माने जाते हैं। सूर्य की कृपा से ही प्रकृति में हलचल होती है, और जीवन संभव बनता है। यदि आप अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं, तो सूर्य चालीसा का नियमित पाठ करना एक प्रभावी उपाय हो सकता है।

सूर्य चालीसा पढ़ने से मानसिक शांति मिलती है, आत्मविश्वास बढ़ता है और सफलता के नए मार्ग खुलते हैं। यह शरीर में नई ऊर्जा का संचार करता है, जिससे न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य भी बेहतर होता है। इसके पाठ से कुंडली में मौजूद सूर्य दोष, पितृ दोष और राहु-केतु के नकारात्मक प्रभाव कम होते हैं, जिससे जीवन में आ रही बाधाएं धीरे-धीरे दूर होने लगती हैं।

 सूर्य चालीसा | Surya Chalisa Lyrics


॥ दोहा ॥

कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग।
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥

अर्थ:
सूर्य देव का शरीर सुनहरे रंग का है, उनके कानों में मकर कुंडल शोभायमान हैं, और उनके शरीर पर मोतियों की माला सुशोभित है। वे पद्मासन (कमल की आसन) पर विराजमान हैं और उनके हाथों में शंख और चक्र हैं। उनका इस रूप में ध्यान करना चाहिए।


॥ चौपाई ॥

जय सविता जय जयति दिवाकर!। सहस्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥
भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!। सविता हंस! सुनूर विभाकर॥

अर्थ:
सूर्य देव की जय हो! वे दिवाकर (दिन के कर्ता), सहस्रांशु (हजारों किरणों वाले), सप्ताश्व (सात घोड़ों वाले रथ के स्वामी), और तिमिरहर (अंधकार को दूर करने वाले) हैं। उन्हें भानु, पतंग (आकाश में उड़ने वाले), मरीची (किरणों वाले), भास्कर (प्रकाशक), सविता (सृष्टि के प्रेरक), हंस (शुद्धता के प्रतीक), और विभाकर (तेजस्वी) कहा जाता है।


विवस्वान! आदित्य! विकर्तन। मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥
अम्बरमणि! खग! रवि कहलाते। वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥

अर्थ:
वे विवस्वान (प्रकाशमय), आदित्य (अदिति के पुत्र), विकर्तन (किरणों वाले), मार्तण्ड (मृतंड के पुत्र), हरिरूप (हरि के समान), और विरोचन (तेजस्वी) हैं। उन्हें अम्बरमणि (आकाश के रत्न), खग (आकाश में विचरण करने वाले), और रवि (तेजस्वी) कहा जाता है। वेदों में उन्हें हिरण्यगर्भ (सृष्टि के आदि कारण) के रूप में वर्णित किया गया है।


सहस्रांशु प्रद्योतन, कहि कहि। मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि॥
अरुण सदृश सारथी मनोहर। हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥

अर्थ:
सहस्रांशु (हजारों किरणों वाले) और प्रद्योतन (प्रकाशमय) सूर्य देव की स्तुति करने से मुनिगण प्रसन्न होते हैं। उनके रथ का सारथी अरुण (लालिमा युक्त) है, जो सात घोड़ों वाले रथ को हांकता है।


मंडल की महिमा अति न्यारी। तेज रूप केरी बलिहारी॥
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते। देखि पुरन्दर लज्जित होते॥

अर्थ:
सूर्य मंडल की महिमा अद्भुत है। उनके तेज और रूप की मैं वंदना करता हूं। उनके रथ के घोड़े उच्चैःश्रवा (इंद्र के घोड़े) के समान हैं, जिन्हें देखकर इंद्र भी लज्जित हो जाते हैं।


मित्र मरीचि भानु अरुण भास्कर। सविता सूर्य अर्क खग कलिकर॥
पूषा रवि आदित्य नाम लै। हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥

अर्थ:
सूर्य देव को मित्र, मरीचि, भानु, अरुण, भास्कर, सविता, सूर्य, अर्क, खग, और कलिकर जैसे नामों से पुकारा जाता है। उन्हें पूषा, रवि, और आदित्य भी कहा जाता है। हम उन्हें हिरण्यगर्भ के रूप में नमन करते हैं।


द्वादस नाम प्रेम सों गावैं। मस्तक बारह बार नवावैं॥
चार पदारथ जन सो पावै। दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै॥

अर्थ:
जो व्यक्ति प्रेम से सूर्य देव के बारह नामों का जाप करता है और बारह बार उन्हें नमन करता है, उसे धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष (चार पुरुषार्थ) की प्राप्ति होती है। उसके दुःख, दरिद्रता, और पाप नष्ट हो जाते हैं।


नमस्कार को चमत्कार यह। विधि हरिहर को कृपासार यह॥
सेवै भानु तुमहिं मन लाई। अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई॥

अर्थ:
सूर्य देव को नमस्कार करने का यह चमत्कार है। यह ब्रह्मा, विष्णु, और शिव की कृपा का स्रोत है। जो व्यक्ति सूर्य देव की भक्ति करता है, उसे अष्टसिद्धि (आठ सिद्धियां) और नवनिधि (नौ निधियां) प्राप्त होती हैं।


बारह नाम उच्चारन करते। सहस जनम के पातक टरते॥
उपाख्यान जो करते तव जन। रिपु सों जमलहते सोतेहि छन॥

अर्थ:
जो व्यक्ति सूर्य देव के बारह नामों का उच्चारण करता है, उसके हजारों जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। जो लोग सूर्य देव की कथाएं सुनाते हैं, वे शत्रुओं से युद्ध में विजयी होते हैं।


धन सुत जुत परिवार बढ़तु है। प्रबल मोह को फंद कटतु है॥
अर्क शीश को रक्षा करते। रवि ललाट पर नित्य बिहरते॥

अर्थ:
सूर्य देव की कृपा से धन, पुत्र, यश, और परिवार की वृद्धि होती है। प्रबल मोह (माया) का बंधन टूट जाता है। सूर्य देव सिर की रक्षा करते हैं और उनका तेज ललाट पर सदैव विराजमान रहता है।


सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत। कर्ण देस पर दिनकर छाजत॥
भानु नासिका वास करहु नित। भास्कर करत सदा मुखको हित॥

अर्थ:
सूर्य देव नेत्रों पर सदैव विराजमान रहते हैं। उनका प्रकाश कानों और शरीर पर छाया रहता है। भानु (सूर्य) नासिका में निवास करते हैं, और भास्कर (सूर्य) सदैव मुख का कल्याण करते हैं।


ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे। रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे॥
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा। तिग्म तेजसः कांधे लोभा॥

अर्थ:
सूर्य देव हमारे ओंठों पर पर्जन्य (वर्षा के देवता) के रूप में विराजमान हैं। जीभ के मध्य में उनका तीक्ष्ण तेज बसता है। कंठ में सुवर्ण (सोने) की शोभा है, और कंधों पर उनका तेजस्वी रूप लोभनीय है।


पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर। त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर॥
युगल हाथ पर रक्षा कारन। भानुमान उरसर्म सुउदरचन॥

अर्थ:
सूर्य देव की बाहें पूषा (पोषण करने वाले) हैं, और पीठ पर मित्र (मित्रता के देवता) विराजमान हैं। त्वष्टा (शिल्प के देवता) और वरुण (जल के देवता) उनके साथ रहते हैं। उनके दोनों हाथ रक्षा के लिए हैं, और उनका उरस (हृदय) और उदर (पेट) सुंदर हैं।


बसत नाभि आदित्य मनोहर। कटिमंह, रहत मन मुदभर॥
जंघा गोपति सविता बासा। गुप्त दिवाकर करत हुलासा॥

अर्थ:
सूर्य देव की नाभि में आदित्य (सूर्य) का निवास है, जो मनोहर है। कमर पर उनका तेज मन को प्रसन्न करता है। जंघाओं पर गोपति (गायों के पालक) और सविता (सृष्टि के प्रेरक) का निवास है। गुप्त रूप से दिवाकर (सूर्य) आनंद प्रदान करते हैं।


विवस्वान पद की रखवारी। बाहर बसते नित तम हारी॥
सहस्रांशु सर्वांग सम्हारै। रक्षा कवच विचित्र विचारे॥

अर्थ:
सूर्य देव के चरणों की रक्षा विवस्वान (सूर्य) करते हैं। वे बाहर रहकर अंधकार को नष्ट करते हैं। सहस्रांशु (हजारों किरणों वाले) सूर्य सर्वांग (सभी अंगों) की रक्षा करते हैं। उनका रक्षा कवच अद्भुत है।


अस जोजन अपने मन माहीं। भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ॥
दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै। जोजन याको मन मंह जापै॥

अर्थ:
जो व्यक्ति सूर्य देव का ध्यान करता है, उसे संसार में कोई भय नहीं होता। उसे दद्रु (चर्म रोग) और कुष्ठ (कोढ़) जैसे रोग कभी नहीं सताते। जो व्यक्ति सूर्य देव का जाप करता है, वह सदैव सुरक्षित रहता है।


अंधकार जग का जो हरता। नव प्रकाश से आनन्द भरता॥
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही। कोटि बार मैं प्रनवौं ताही॥

अर्थ:
सूर्य देव संसार के अंधकार को दूर करते हैं और नए प्रकाश से आनंद प्रदान करते हैं। वे ग्रहों और नक्षत्रों को ग्रसित नहीं होने देते। मैं उन्हें कोटि बार प्रणाम करता हूं।


मंद सदृश सुत जग में जाके। धर्मराज सम अद्भुत बांके॥
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा। किया करत सुरमुनि नर सेवा॥

अर्थ:
जिसके पुत्र मंद (शनि) के समान होते हैं, वह धर्मराज (यमराज) के समान अद्भुत और बांके (तेजस्वी) होता है। हे दिनमणि देव (सूर्य), आप धन्य हैं। आप देवताओं, मुनियों, और मनुष्यों की सेवा करते हैं।


भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों। दूर हटतसो भवके भ्रम सों॥
परम धन्य सों नर तनधारी। हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी॥

अर्थ:
जो व्यक्ति भक्ति और नियम से सूर्य देव की उपासना करता है, उसके संसार के भ्रम दूर हो जाते हैं। वह परम धन्य होता है, और सूर्य देव उस पर प्रसन्न होते हैं, जो अंधकार को दूर करता है।


॥ दोहा ॥

भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।
सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य॥

अर्थ:
जो व्यक्ति प्रेम से सूर्य चालीसा का पाठ करता है, उसे सुख, समृद्धि, और विभिन्न प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं। वह सदैव कृतार्थ (संतुष्ट) रहता है।


यह स्तुति सूर्य देव की महिमा और उनकी उपासना के महत्व को दर्शाती है। इसे पढ़ने और सुनने से मनुष्य को आध्यात्मिक और भौतिक लाभ प्राप्त होते हैं।

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