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Suryashtakam: रोजगार और सरकारी नौकरी पाने में लाभदायक क्यों है? जानिए पाठ विधि।

Suryashtakam:
Suryashtakam: भगवान सूर्य की आराधना करने वाला 8 श्लोकों का एक पावन स्तोत्र है। मान्यता है कि यह स्तोत्र स्वयं भगवान शिव ने सृष्टि के कल्याण के लिए प्रकट किया था। इसमें सूर्यदेव के तेज, उनकी समस्त लोकों पर छाई हुई प्रभुता, और उनके पाप-विनाशक स्वरूप का वर्णन है। (Suryashtakam) सूर्य को कर्म और न्याय का देवता माना जाता है। इसलिए, जीवन में स्थिरता, नौकरी-रोजगार में सफलता, और मानसिक बल प्राप्त करने के लिए इस स्तोत्र का पाठ अत्यंत फलदायी माना गया है।

सूर्याष्टकम् क्यों लाभदायक है? रोजगार और सरकारी नौकरी पाने के लिए।

  1. कर्म की ऊर्जा का स्रोत: ( Source of Karmic Energy )
    सूर्यदेव को “कर्मसाक्षी” कहा जाता है। नियमित पाठ से व्यक्ति के अंदर कर्म करने की उर्जा और लगन बढ़ती है, जो सरकारी परीक्षाओं या इंटरव्यू की तैयारी में जरूरी है।
  2. मानसिक एकाग्रता और आत्मविश्वास: (Mental Concentration And Confidence )
    सूर्याष्टकम के श्लोकों में निहित मंत्र-शक्ति मन को शांत करती है और ध्यान केंद्रित करने में मदद करती है। इससे इंटरव्यू या परीक्षा के समय घबराहट दूर होती है।
  3. ग्रह दोषों का निवारण: ( Remedies For Planetary Defects ) 
    ज्योतिष के अनुसार, सूर्य की कमजोरी से राज्य सम्मान, नौकरी, और प्रतिष्ठा में बाधाएं आती हैं। सूर्याष्टकम का पाठ सूर्य ग्रह को मजबूत करके इन समस्याओं को दूर करता है।
  4. पाप कर्मों के प्रभाव का शमन: (Mitigation Of The Effects Of Sinful Deeds)
    श्लोक 3 और 4 में सूर्यदेव को “महापापहरं देवं” कहा गया है। पूर्व जन्म या वर्तमान के पाप कर्मों के कारण आ रही रुकावटें इससे दूर होती हैं।
  5. तेज और प्रभावशीलता: (Fastness and Effectiveness)
    सूर्याष्टकम व्यक्तित्व में चमक लाता है, जिससे इंटरव्यू या नौकरी में आपका आत्मविश्वास और प्रभाव बढ़ता है।

 

आदिदेव नमस्तुभ्यंप्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यंप्रभाकर नमोऽस्तुते॥1॥

सप्ताश्वरथमारूढंप्रचण्डं कश्यपात्मजम्।
श्वेतपद्मधरं देवं तंसूर्यं प्रणमाम्यहम्॥2॥

लोहितं रथमारूढंसर्वलोकपितामहम्।
महापापहरं देवं तंसूर्यं प्रणमाम्यहम्॥3॥

त्रैगुण्यं च महाशूरंब्रह्माविष्णुमहेश्वरम्।
महापापहरं देवं तंसूर्यं प्रणमाम्यहम्॥4॥

बृंहितं तेजःपुञ्जं चवायुमाकाशमेव च।
प्रभुं च सर्वलोकानांतं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥5॥

बन्धूकपुष्पसङ्काशंहारकुण्डलभूषितम्।
एकचक्रधरं देवंतं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥6॥

तं सूर्यं जगत्कर्तारंमहातेजःप्रदीपनम्।
महापापहरं देवंतं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥7॥

तं सूर्यं जगतां नाथंज्ञानविज्ञानमोक्षदम्।
महापापहरं देवंतं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥8॥

॥ इति श्रीशिवप्रोक्तं सूर्याष्टकं सम्पूर्णम् ॥


सूर्याष्टकम् PDF, आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर pdf

     

 

श्री सूर्य अष्टकम स्तोत्र अर्थ सहित ( Suryashtakam Minning In Hindi )

॥ सूर्याष्टकम् ॥
(अर्थ सहित हिंदी में)

श्लोक 1
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते॥

अर्थ:
हे आदिदेव (सबसे पहले पूजे जाने वाले देवता) सूर्यदेव! आपको नमस्कार है। हे भास्कर! मुझ पर कृपा कीजिए। हे दिवाकर! आपको नमस्कार है। हे प्रभाकर! आपको बार-बार प्रणाम है।

श्लोक 2
सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम्।
श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥

अर्थ:
जो सात घोड़ों के रथ पर सवार हैं, अत्यंत तेजस्वी हैं, कश्यप ऋषि के पुत्र हैं, और श्वेत कमल धारण किए हुए हैं – उस सूर्यदेव को मैं प्रणाम करता हूँ।

श्लोक 3
लोहितं रथमारूढं सर्वलोकपितामहम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥

अर्थ:
जो लालिमा युक्त रथ पर विराजमान हैं, समस्त लोकों के पितामह हैं और महान पापों का नाश करने वाले हैं – उस दिव्य सूर्यदेव को मैं प्रणाम करता हूँ।

श्लोक 4
त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्माविष्णुमहेश्वरम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥

अर्थ:
जो सत्व, रज और तम – इन तीनों गुणों से युक्त हैं, अत्यंत पराक्रमी हैं, और ब्रह्मा, विष्णु व महेश – इन तीनों रूपों में प्रकट होते हैं – उन पाप नाशक सूर्यदेव को मैं प्रणाम करता हूँ।

श्लोक 5
बृंहितं तेजःपुञ्जं च वायुमाकाशमेव च।
प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥

अर्थ:
जो तेज का पुंज हैं, वायु और आकाश स्वरूप हैं, तथा समस्त लोकों के स्वामी हैं – उन दिव्य सूर्यदेव को मैं नमस्कार करता हूँ।

श्लोक 6
बन्धूकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम्।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥

अर्थ:
जो बन्धूक (गुड़हल) पुष्प के समान लाल आभा वाले हैं, हार और कुण्डलों से सुशोभित हैं, और जिनके रथ में एक ही चक्र (पहिया) है – उन दिव्य सूर्यदेव को मैं प्रणाम करता हूँ।

श्लोक 7
तं सूर्यं जगत्कर्तारं महातेजःप्रदीपनम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥

अर्थ:
जो सम्पूर्ण सृष्टि के रचयिता हैं, जिनसे महान तेज प्रकट होता है, और जो समस्त पापों का नाश करते हैं – ऐसे सूर्यदेव को मैं प्रणाम करता हूँ।

श्लोक 8
तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानविज्ञानमोक्षदम्।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम्॥

अर्थ:
जो सम्पूर्ण जगत के स्वामी हैं, ज्ञान, विज्ञान और मोक्ष प्रदान करने वाले हैं, और महापापों का विनाश करने वाले हैं – उन सूर्यदेव को मैं प्रणाम करता हूँ।

॥ इति श्रीशिवप्रोक्तं सूर्याष्टकं सम्पूर्णम् ॥

अर्थ:
इस प्रकार भगवान शिव द्वारा कहा गया सूर्याष्टक स्तोत्र पूर्ण हुआ।

सूर्याष्टकम् अर्थ सहित PDF, सूर्य स्तोत्र PDF

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 सूर्याष्टकम पाठ की विधि ( Suryashtakam Path Kaise Kare)

  1. समय: प्रातः सूर्योदय के समय (ब्रह्म मुहूर्त) इसका पाठ सबसे शुभ माना जाता है।
  2. आसन: साफ स्थान पर लाल या पीला आसन बिछाकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें।
  3. शुद्धता: स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। हाथ में जल, फूल, या अक्षत लेकर संकल्प करें।
  4. ध्यान: सूर्यदेव का ध्यान करें—लाल वस्त्रधारी, रथ पर सवार, हाथ में कमल लिए हुए।
  5. पाठ: सूर्याष्टकम के 8 श्लोकों का स्पष्ट उच्चारण करें। प्रत्येक श्लोक के बाद सूर्य मंत्र “ॐ घृणि सूर्याय नमः” या “ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः” बोलें।
  6. अर्घ्य: पाठ के बाद तांबे के लोटे से जल में लाल फूल और चावल मिलाकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें।
  7. नियम: कम से कम 40 दिनों तक लगातार पाठ करें। साथ ही, “ॐ सूर्याय नमः” का जप भी कर सकते हैं।

विशेष टिप्स

  • सूर्याष्टकम का पाठ करते समय लाल चंदन की माला या रुद्राक्ष धारण करना शुभ माना जाता है।
  • यदि संभव हो, तो रविवार के दिन व्रत रखकर गेहूं या गुड़ का दान करें।
  • पाठ के दौरान सकारात्मक विचार रखें और अपने लक्ष्य को मन में दोहराएं।

निष्कर्ष

सूर्याष्टकम न केवल एक आध्यात्मिक साधना है, बल्कि यह मनोवैज्ञानिक रूप से भी आपको प्रेरित करता है। जब आप नियमित रूप से सूर्यदेव की कृपा पाने के लिए प्रयास करते हैं, तो आपका आत्मविश्वास और धैर्य स्वतः ही बढ़ता है। याद रखें, सफलता के लिए कर्म और भक्ति दोनों का मेल जरूरी है। इसलिए, सूर्याष्टकम के साथ-साथ अपनी तैयारी में पूरी मेहनत करें—सूर्यदेव आपके प्रयासों को अवश्य फलित करेंगे!

ॐ सूर्याय नमः।


यह लेख आपको प्रेरणा और मार्गदर्शन देने के लिए लिखा गया है। सूर्याष्टकम के पाठ से पहले किसी विद्वान पंडित या गुरु से विधि स्पष्ट कर लें।

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