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Vishnu Chalisa: विष्णु चालीसा के नियमित पाठ करने से माता लक्ष्मी जी की कृपा होती है, और धन का लाभ होता हैं।

श्री विष्णु चालीसा हिंदू धर्म में भगवान विष्णु की महिमा को समर्पित एक पावन चालीसा है, जो भक्तों को आध्यात्मिक शक्ति, मानसिक शांति और जीवन की समस्त बाधाओं से मुक्ति दिलाने में सक्षम माना जाता है। 40 छंदों वाली इस चालीसा में भगवान विष्णु के गुणों, अवतारों और उनकी लीलाओं का वर्णन है, जो भक्ति भाव को गहरा करते हुए व्यक्ति को आंतरिक ऊर्जा से भर देता है। यदि आप गूगल पर “विष्णु चालीसा के लाभ”, “विष्णु चालीसा का महत्व” या “विष्णु चालीसा कैसे पढ़ें” जैसे कीवर्ड्स खोज रहे हैं, तो जान लें कि नियमित रूप से इसका पाठ करने से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं, कर्मों का शुद्धिकरण होता है और विष्णु जी की कृपा का आशीर्वाद मिलता है। वैदिक परंपरा और आधुनिक विज्ञान दोनों ही मंत्रों के सकारात्मक प्रभाव को स्वीकारते हैं, इसलिए विष्णु चालीसा (Lord Vishnu Chalisa) को दैनिक जीवन में शामिल करना आपके मन की एकाग्रता, आत्मविश्वास और सुख-समृद्धि को बढ़ाने का सर्वोत्तम उपाय है।

श्री विष्णु चालीसा | (Shree Vishnu Chalisa)

।। दोहा।।

विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय ।
कीरत कुछ वर्णन करूं दीजै ज्ञान बताय ॥

।। चौपाई।।

नमो विष्णु भगवान खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी ।
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फैल रही उजियारी ॥

सुन्दर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत ।
तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजन्ती माला मन मोहत ॥

शंख चक्र कर गदा बिराजे, देखत दैत्य असुर दल भाजे ।
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे ॥

सन्तभक्त सज्जन मनरंजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन ।
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाय करत जन सज्जन ॥

पाप काट भव सिन्धु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण ।
करत अनेक रूप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण ॥

धरणि धेनु बन तुमहिं पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा ।
भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा ॥

आप वाराह रूप बनाया, हरण्याक्ष को मार गिराया ।
धर मत्स्य तन सिन्धु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया ॥

अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया ।
देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया ॥

कूर्म रूप धर सिन्धु मझाया, मन्द्राचल गिरि तुरत उठाया ।
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया ॥

वेदन को जब असुर डुबाया, कर प्रबन्ध उन्हें ढुढवाया ।
मोहित बनकर खलहि नचाया, उसी कर से भस्म कराया ॥

असुर जलन्धर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लडाई ।
हार पार शिव सकल बनाई, कीन सती से छल खल जाई ॥

सुमिरन कीन तुम्हें शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी ।
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी ॥

देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हें लपटानी ।
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी ॥

तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे, हिरणाकुश आदिक खल मारे ।
गणिका और अजामिल तारे, बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे ॥

हरहु सकल संताप हमारे, कृपा करहु हरि सिरजन हारे ।
देखहुं मैं निज दरश तुम्हारे, दीन बन्धु भक्तन हितकारे ॥

चहत आपका सेवक दर्शन, करहु दया अपनी मधुसूदन ।
जानूं नहीं योग्य जब पूजन, होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन ॥

शीलदया सन्तोष सुलक्षण, विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण ।
करहुं आपका किस विधि पूजन, कुमति विलोक होत दुख भीषण ॥

करहुं प्रणाम कौन विधि सुमिरण, कौन भांति मैं करहु समर्पण ।
सुर मुनि करत सदा सेवकाई, हर्षित रहत परम गति पाई ॥

दीन दुखिन पर सदा सहाई, निज जन जान लेव अपनाई ।
पाप दोष संताप नशाओ, भव बन्धन से मुक्त कराओ ॥

सुत सम्पति दे सुख उपजाओ, निज चरनन का दास बनाओ ।
निगम सदा ये विनय सुनावै, पढ़ै सुनै सो जन सुख पावै ॥

।। दोहा।।

भक्त हृदय में वास करें पूर्ण कीजिये काज ।
शंख चक्र और गदा पद्म हे विष्णु महाराज ॥

यहां 👉 लक्ष्मी चालीसा पढ़ें।

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